भगवंत मान सरकार चाहे तो पंजाब के पूर्व विधायकों की पेंशन पूर्णतया भी बंद कर सकते है 

भारत के संविधान के अनुच्छेद 195 में विधायकों हेतु केवल वेतन और भत्तों का प्रावधान, पेंशन का उल्लेख नहीं – एडवोकेट हेमंत

चंडीगढ़ – पंजाब के मुख्यमंत्री  भगवंत मान ने  घोषणा की है कि जल्द ही ऐसी  व्यवस्था की जायेगी जिससे पंजाब में एक पूर्व  विधायक को एक ही कार्यकाल (टर्म ) की  पेंशन मिलेगी बेशक  वह कितनी ही बार चुनाव जीत कर  विधायक निर्वाचित हुआ  हो. यहीं नहीं पूर्व विधायकों के परिवारों को मौजूदा  मिल रही पेंशन की भी समीक्षा की जायेगी.

पंजाब में मौजूदा समय में कई पूर्व विधायकों की प्रतिमाह लाखों रुपये पेंशन बनती है. हाल ही में सम्पन्न 16 वीं पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और अकाली दल के लगभग सभी वरिष्ठ नेता चुनाव हार गए हैं जो पूर्व में कई कई बार विधायक एवं  मुख्यमंत्री/मंत्री आदि रहे हैं जिस कारण उनकी पेंशन राशि भी लाखों में बनेगी. केवल पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल  द्वारा पूर्व विधायक के तौर पर पेंशन लेने से विधानसभा स्पीकर को  लिखकर इंकार किया गया है.

बहरहाल, इस बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने एक रोचक परन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि अगर पंजाब की भगवंत मान सरकार चाहे तो वह सम्बंधित कानून में प्रदेश विधानसभा  मार्फ़त संशोधन करवाकर प्रदेश के पूर्व विधायकों की पेंशन पूर्णतया भी बंद कर सकती है.

हेमंत ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 195 का हवाला देते हुए बताया कि उसमें केवल विधायकों के लिए वेतन और भत्तों का प्रावधान किया गया है एवं उसमें या  संविधान के किसी भी अन्य अनुच्छेद में पूर्व विधायकों को  पेंशन देने का कोई उल्लेख नहीं है. इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 106 में सांसदों हेतु भी वेतन और भत्तों का प्रावधान है, पेंशन का नहीं.

आज से चार वर्ष पूर्व अप्रैल, 2018 में  सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसदों  को प्राप्त होने वाली पेंशन राशि को चुनौती देने वाली एक याचिका को ख़ारिज कर दिया था. कोर्ट के अनुसार   पूर्व सांसदों को  पेंशन देने या न देने सम्बन्धी कोई भी निर्णय  में देश की संसद के अधिकार-क्षेत्र में आता है.

हेमंत ने बताया कि उक्त आधार पर ही  प्रदेश के पूर्व विधायकों को पेंशन देने या न देने के   सम्बन्ध में  सम्बंधित राज्य की विधानसभा या विधानमंडल  द्वारा ही फैसला लिया जा सकता है.

भारत के संविधान के अनुच्छेद   106 एवं  अनुच्छेद  195 में  स्पष्ट उल्लेख है  कि क्रमशः संसद सदस्यों एवं राज्य विधानमंडल के सदस्यों के  वेतन एवं भत्ते वही  होंगे जो कि संसद एवं विधानमंडल द्वारा समय समय पर उपयुक्त  कानून बनाकर  निर्धारित किये जायेंगे और जब तक इस बाबत  प्रावधान नहीं बनाया  जाता  तो जो भत्ते संविधान सभा के सदस्यों एवं प्रांतीय अस्सेम्ब्लीज़ के सदस्यों  को  संविधान के लागू होने से पहले  उन्हें प्राप्त होते थे, उसी दर पर वह सांसदों और विधायको को मिलेंगे. अब इससे साफ़ जाहिर होता है कि न तो संविधान लागू होने से पहले न उसके बाद आज तक उमसें   पूर्व संसद सदस्यों एवं पूर्व विधायको को दी जाने वाली पेंशन के बारे में कोई उल्लेख या प्रावधान नहीं किया गया, तो फिर उन्हें पेंशन कैसे प्राप्त हो सकती  है. भारतीय संसद ने वर्ष 1954  में संसद सदस्य ( वेतन और भत्ते) कानून  बनाया जिसमे भी पेंशन बाबत कोई प्रावधान नही था जिसे हालाकि वर्ष 1976 में संशोधित कर संसद सदस्य ( वेतन, भत्ते और पेंशन) कानून  बना दिया गया था. अत: पूर्व सांसदों को पेंशन देने बाबत प्रावधान संविधान लागू होने के लगभग 26 वर्ष पश्चात बनाया गया. इसी प्रकार पंजाब  विधानसभा द्वारा भी  राज्य में पूर्व विधायको को पेंशन देने हेतु  प्रावधान संसद के उपरोक्त कानून के बाद ही बनाया गया.

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