जो हमारी तरह से विवाह ना करे उनका होना चाहिए विशेष सम्‍मान: बाबा रामदेव - Punjab Times

जो हमारी तरह से विवाह ना करे उनका होना चाहिए विशेष सम्‍मान: बाबा रामदेव

हरिद्वार: योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि इस देश में जो हमारी तरह से विवाह ना करे उनका विशेष सम्मान होना चाहिए। जो विवाह करे तो 2 से ज्यादा संतान पैदा करे तो उसकी वोटिंग राइट नहीं होनी चाहिए।पतंजलि योगपीठ फेस 2 में आयोजित ज्ञान कुंभ के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में वक्ताओं ने उच्च शिक्षा और भारतीय ज्ञान परंपरा पर अपने विचार रखें। योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को जाति धर्म वर्ण लिंग के आधार पर भेदभाव ठीक नहीं है। कहा कि भारतीय संस्कृति में सभी को समान शिक्षा का अधिकार है। बोले कि हमारे अंदर ज्ञान की असीम संभावनाएं हैं। इसे तलाशने में गुरु और विश्वविद्यालय की भूमिका अहम है। कहा कि आज शिक्षण संस्थानों में अभ्यास पर ज्यादा जोर नहीं दिया जा रहा है। इसके बिना कोई भी पूरी तरह से प्रतिष्ठित नहीं हो सकता। कहा कि विश्वविद्यालयों में ऐसी व्यवस्था बनाएं, जहां प्रतिस्पर्धा की जगह आत्मास्पर्धा हो। इससे ही युग निर्माण संभव है उन्होंने विश्वविद्यालयों में योग आयुर्वेद नेचुरोपैथी आदि को बढ़ावा देने पर जोर दिया और इसके लिए पतंजलि की ओर से सहयोग का भी भरोसा दिया।

केवल यह कहने से काम नहीं चलेगा कि हमारी परंपरा श्रेष्ठ है

संस्कृत उत्थान न्यास के राष्ट्रीय संयोजक डॉक्टर अतुल भाई कोठारी ने कहा कि शिक्षा का मूल आधार एकाग्रता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल से सफलतम बनने के लिए एकाग्रता बेहद जरूरी है। इसके लिए उन्होंने शिक्षण संस्थानों में पठन-पाठन की प्रक्रिया से पूर्व ओमकार के प्रयोग पर बल दिया। इससे एकाग्रता के साथ आत्मिक शांति भी मिलेगी। केवल यह कहने से काम नहीं चलेगा कि हमारी परंपरा श्रेष्ठ है। इसकी अनुभूति भी करानी होगी। हम नैतिक मूल्यों की बात करते हैं पर पहले स्वयं के अंदर नैतिकता का पुट होना जरूरी है। भारतीय ज्ञान परंपरा को और आगे ले जाना हम सबों का सामूहिक दायित्व होना चाहिए। चरित्र निर्माण और व्यक्तित्व विकास की शिक्षा शिक्षण संस्थानों में दी जानी चाहिए। इससे विद्यार्थी ना केवल आत्मनिर्भर होगा, बल्कि दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनाएगा।

जब तक शिक्षा की अपनी भाषा नहीं होगी तब तक बहुत ज्यादा तरक्की संभव नहीं है। अपनी भाषा में शिक्षा बगैर भारतीय ज्ञान परंपरा को विकसित नहीं किया जा सकता है। कहा मां और मात्री भाषा का कोई विकल्प नहीं है। समस्या खिलाने से समाधान नहीं होने वाला। देश को बदलना है। शिक्षा पद्धति को भी बदलना होगा। पहले सत्र में प्रोफेसर यू एस रावत, प्रोफेसर आर के पांडे, देवी प्रसाद त्रिपाठी, पीयूष कांत दीक्षित, डीपी सिंह, उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत आदि मौजूद रहे।

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