नहीं चला पूर्व विधायकों को पार्टी में लाने का दांव - Punjab Times

नहीं चला पूर्व विधायकों को पार्टी में लाने का दांव

देहरादून: चुनाव कोई भी हो, उसमें हर दल व संगठन यही चाहता है कि जीत उसकी झोली में आए। इसके लिए तरह-तरह के दांव चुनाव से पहले चले जाते हैं। इस बार लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कांग्रेस समेत अन्य दलों व संगठनों के लिए अपने दरवाजे खोले।

इस दौरान कांग्रेस के एक विधायक समेत नौ पूर्व विधायकों को भाजपा ने पाले में खींचा, लेकिन अब लोकसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि उसका यह दांव खास असर नहीं दिखा पाया। इस सबको देखते हुए भाजपा नेतृत्व अब पार्टी विधायकों के साथ ही पूर्व विधायकों के प्रदर्शन की समीक्षा करने जा रहा है।
कुल मतदान का 75 प्रतिशत हासिल करने का था लक्ष्य

भाजपा ने लोकसभा चुनाव में इस बार कुल मतदान का 75 प्रतिशत हासिल करने का लक्ष्य रखा था। इसी क्रम में पार्टी ने अन्य दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं की आमद के लिए अभियान चलाया। लोकसभा चुनाव से पहले बड़ी संख्या में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बसपा, उक्रांद समेत अन्य दलों व संगठनों के नेताओं और निकाय एवं पंचायतों के प्रतिनिधियों ने भाजपा का दामन थामा।

पार्टी का दावा है कि इस अभियान में 15 हजार से अधिक लोग भाजपा में शामिल हुए। इसके पीछे पार्टी की मंशा यही थी कि चुनाव में जीत का जो लक्ष्य रखा गया है, उसकी प्राप्ति में कहीं कोई कमी न रहने पाए।

भाजपा ने अभियान के दौरान कांग्रेस में सेंध लगाते हुए बदरीनाथ सीट से विधायक राजेंद्र भंडारी को अपने पाले में खींचा। इसके अलावा पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण (गंगोत्री), माल चंद (पुरोला), महावीर सिंह रांगड़ (धनोल्टी), शैलेंद्र सिंह रावत (कोटद्वार), दान सिंह (कुमाऊं), हरिदास (हरिद्वार), पूर्व मंत्री दिनेश धनै (टिहरी) व दिनेश अग्रवाल (धर्मपुर-देहरादून) भी भाजपा में आए। पार्टी को उम्मीद थी कि इन पूर्व विधायकों का साथ लेकर इनके विधानसभा क्षेत्रों में बड़ा जनसमर्थन हासिल कर वह अपनी विजय यात्रा में नए प्रतिमान गढ़ेगी।

यद्यपि, लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के पक्ष में रहे और उसने लगातार तीसरी बार राज्य में पांचों सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रचा है, लेकिन जिन विधानसभा क्षेत्रों के पूर्व विधायक पार्टी में शामिल हुए, वहां प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा। विशेषकर पहाड़ के विधानसभा क्षेत्रों में।

कांग्रेस को लगभग नौ हजार मतों का नुकसान

मतगणना के आंकड़े तो इसी तरह इशारा कर रहे हैं। गढ़वाल संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले बदरीनाथ विधानसभा क्षेत्र को ही लें तो वहां भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में प्राप्त मतों से मात्र 1259 मत ही अधिक मिले। यह बात अलग है कि वहां कांग्रेस को लगभग नौ हजार मतों का नुकसान हुआ।

इसी प्रकार टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले पुरोला विधानसभा क्षेत्र को देखें तो भाजपा वहां विधानसभा के प्रदर्शन तक भी नहीं पहुंच पाई। ऐसी ही स्थिति गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र में रही। वह भी तब, जबकि पुरोला में पूर्व विधायक मालचंद और गंगोत्री में पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण भाजपा के साथ आए थे। इन विस क्षेत्रों में निर्दलीय बाबी पंवार ने पुरोला में 25 हजार से ज्यादा और गंगोत्री में 19 हजार से अधिक मत हासिल कर दोनों दलों भाजपा व कांग्रेस के वोट बैंक में जबर्दस्त सेंधमारी की।

बात टिहरी विस क्षेत्र की करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय मैदान में उतरे पूर्व मंत्री दिनेश धनै 18 हजार से ज्यादा मत हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे थे। इस बार के लोकसभा चुनाव में वह भाजपा के साथ थे। लोकसभा चुनाव में इस विस क्षेत्र में 18 हजार मत हासिल हुए, जो उसे विधानसभा क्षेत्र में प्राप्त मतों से एक हजार कम हैं। कुछ ऐसा ही परिदृश्य धनोल्टी विस क्षेत्र में देखने को मिला।

लोकसभा चुनाव में भाजपा यहां विस चुनाव के प्रदर्शन से चार हजार से ज्यादा मतों से पीछे रही। इन दोनों विस क्षेत्रों में भी निर्दलीय बाबी पंवार ने भाजपा के साथ ही कांग्रेस को भी नुकसान पहुंचाया। बता दें कि विधानसभा की पुरोला, गंगोत्री, टिहरी व धनोल्टी सीटें भाजपा के पास हैं। मैदानी भूगोल वाली धर्मपुर, कोटद्वार व हरिद्वार क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन विस चुनाव से बेहतर रहा। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए भाजपा मंथन में जुट गई है।

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