पौड़ी बस हादसा: बदनसीबों को कफन भी नहीं हुआ नसीब - Punjab Times

पौड़ी बस हादसा: बदनसीबों को कफन भी नहीं हुआ नसीब

धूमाकोट, पौड़ी : धुमाकोट में हुए भीषण बस हादसे में असमय काल का ग्रास बने कई बदनसीबों की चीथड़े हो चुकी देह को कफन तक नसीब नहीं हो पाया। रविवार देर शाम चादर व चुन्नियों में लपेट ‘अपनों’ के शवों को घर लेकर पहुंचे परिजन सोमवार सुबह कफन के लिए मारे-मारे फिरते रहे। लेकिन, नियति की क्रूरता देखिए कि धुमाकोट बाजार में भी कफन का कपड़ा कम पड़ गया।

धुमाकोट बस हादसे में इडिय़ाकोट पट्टी के नाला, पोखार, मैरा, भौन, पीपली, अपोला, डंडधार, बाड़ागाड, डंडोली, ढंगलगांव व परकंडई गांवों के लोग सबसे ज्यादा संख्या में हताहत हुए। हादसे के बाद लोग दिनभर घटनास्थल पर अपनों की रक्तरंजित निर्जीव काया के साथ बदहवास स्थिति में रहे। देर शाम पोस्टमार्टम के बाद जब शवों को घर ले जाने की बारी आई तो परिजनों के पास कफन तक नहीं था। प्रशासन की निष्ठुरता देखिए कि कफन की व्यवस्था का जिम्मा भी मृतकों के परिजनों पर ही छोड़ दिया।

आलम यह रहा कि पूरे दिन की बदहवासी और मातम के माहौल में लोगों को मौके पर दुपट्टे से लेकर चादर तक, जो भी कपड़ा मिला, उसी में अपने प्रियजनों के शव को बांध  टैक्सियों के जरिये घरों तक लाना पड़ा। सोमवार सुबह शवों के लिए कफन का इंतजाम करने जब परिजन धुमाकोट बाजार पहुंचे तो कईयों को वहां भी कफन का कपड़ा नहीं मिल पाया।

दरअसल, धुमाकोट बाजार में कफन के उपयोग में लाए जाने वाले सफेद कपड़े के सिर्फ चार थान ही उपलब्ध थे, जिन्हें अधिकांश मृतकों के परिजन पहले ही ले जा चुके थे। नतीजा, कई बदनसीबों को चुन्नी, चादर आदि में लपेटकर ही ‘अपनों’ की पार्थिव देह को श्मशान ले जाना पड़ा। मातम में डूबे इन परिजनों ने हरिद्वार व काशीपुर समेत अपने पुश्तैनी घाटों पर पहुंचकर ‘अपनों ‘ को अंतिम विदाई दी।

दाह-संस्कार को लकड़ी भी नहीं मिली

धुमाकोट बस हादसे में जान गवां चुके लोगों के दाह संस्कार को लकडिय़ां भी नसीब नहीं हो पाई। पैतृक घाटों की स्थिति इस कदर खराब थी कि कइयों को हरिद्वार समेत अन्य स्थानों पर जाकर दाह संस्कार करना पड़ा। ग्राम मैरा के एक ही कुटुंब के आठ सदस्यों का अंतिम संस्कार हरिद्वार में हुआ तो ग्राम नाला के एक ही परिवार के तीन सदस्यों का काशीपुर में। विदित हो कि चार वर्ष पूर्व धुमाकोट स्थित वन निगम के लकड़ी के टाल को अन्यत्र शिफ्ट कर दिया गया गया था। नतीजा, ग्रामीणों को सामान्य दिनों में भी लकड़ी के लिए भटकना पड़ता है। इतना ही नहीं, क्षेत्र में सल्ट महादेव घाट को छोड़ अधिकांश पैतृक घाट बहुत दूर और बीहड़ स्थानों पर हैं। इन घाटों तक पहुंचने के रास्ते भी जर्जर हो चुके हैं। ऐसे में वहां तक शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाना अपने-आप में बहुत बड़ी चुनौती है।

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