उत्‍तरकाशी भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ के लिहाज से अति संवेदनशील पहाड़ की घाटियों में मौसम की चुनौतियों के साथ सुरक्षित एयर स्पेस नहीं है। इसके कारण हेली के क्रैश होने या फिर इमरजेंसी लैंडिंग की घटनाएं घटित हो रही हैं। आपदा प्रभावित आराकोट क्षेत्र बनाए अस्थाई हेलीपैड तक पहुंचने के लिए सुरक्षित रूट और कोई चार्ट तैयार नहीं किया है। केवल अनुमान के हिसाब से असुरक्षित एयर स्पेस में राहत-रेस्क्यू की उड़ानें भरी जा रही हैं।

उत्तरकाशी के आराकोट क्षेत्र में बीते रविवार की तड़के बादल फटने के कारण कई गांवों में भारी नुकसान हुआ। प्रभावितों को तत्काल राहत रेस्क्यू पहुंचाने के लिए हेली रेस्क्यू शुरू किया गया। यह रेस्क्यू असुरक्षित ढंग से चल रहा है। यह भी प्रशासन और हेली के पायलटों को पता नहीं है कि कहां-कहां ट्रॉली के तार हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में दोपहर के बाद वायु दवाब भी अधिक बन रहा है, जिसके कारण हेली रेस्क्यू में दिक्कतें आ रही हैं।

बीते मंगलवार की शाम देहरादून से मोरी आया वायु सेना का हेलीकॉप्टर मोरी में लैंडिंग नहीं कर पाया था। इसी तरह से वायु सेना ने आराकोट के हेलीपैड को भी अपने चॉपर की लैंडिंग और टेकऑफ के लिए सुरक्षित नहीं पाया। इसके कारण वायु सेना ने बीते दिनों केवल मोरी के ही हेलीपैड से रेस्क्यू अभियान चलाया था। शुक्रवार को जिस हेलीकॉप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ी उस हेलीकॉप्टर ने आराकोट से उड़ान भरी थी, जिसे आराकोट से कुछ ही दूरी पर जाने के बाद इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ीं। स्थानीय स्तर पर कोई सही रूट चार्ट नहीं बना है।आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित एयर स्पेस की होती दिक्कतें

जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल कहते हैं कि हेलीकॉप्टर के संचालन का सबसे सुरक्षित समय सुबह का होता है, लेकिन सही एयर स्पेस भी होना चाहिए। इससे हेलीकॉप्टर आसानी से उड़ान भी भर सके और लैंडिंग भी कर सके। हालांकि, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित एयर स्पेस जैसी दिक्कतें होती हैं।

प्रभावित क्षेत्र में अस्थाई तौर पर बनाए गए हेलीपैड 

डॉ. आशीष चौहान (जिलाधिकारी, उत्तरकाशी) का कहना है कि आराकोट क्षेत्र हेली रेस्क्यू के जरिये काफी सहायता मिली है। एक घटना हेली क्रैश होने और एक हेली की इमरजेंसी लैंडिंग की हुई है। प्रभावित क्षेत्र में अस्थाई तौर पर हेलीपैड बनाए गए हैं