भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद देहरादून द्वारा संचालित मासिक संगोष्ठी
भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद देहरादून द्वारा संचालित मासिक संगोष्ठी की श्रृंखला में 01 अगस्त, 2019 को आनुवंसिकी एवं वृक्ष सुधार प्रभाग, वन अनुसन्धान संस्थान, देहरादून द्वारा ‘वनस्पतियों की उत्पादकता बढ़ाने में आनुवंसिकी तोर से बेहतर रोपण सामग्री के महत्व’ पर एक सेमिनार आयोजित किया गया था। सेमिनार का मूल उद्देश्य वृक्षारोपण वानिकी में उत्पादकता बढ़ाने के लिए रोपण सामग्री में आनुवंसिकी सुधार के ज्ञान को साझा करना है। आनुवंशिक रूप से उन्नत रोपण स्टॉक को विकसित करने के लिए उपलब्ध विभिन्न तकनीकियो कि चर्चा की गई और प्रौद्योगिकी के विकास और हस्तांतरण में आहे अंतराल की भी पहचान की गई है। सेमिनार में विभिन्न संस्थानों, विश्वविद्यालयों, उद्योगों और वन विभागों के कुल 73 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सेमिनार को उद्घाटन और पैनल सत्रों के अलावा दो तकनीकी सत्रों में विभाजित किया गया था। शुरुआत में सभी प्रतिनिधियों द्वारा एक संक्षिप्त परिचय दिया गया। डॉ। अशोक कुमार, वैज्ञानिक एफ एवं आनुवंसिकी एवं वृक्ष सुधार प्रभाग के प्रमुख ने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और संगोष्ठी का अवलोकन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि संगोष्ठी वृक्षारोपण वानिकी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उचित कार्यवाही और योजना के निर्माण और निर्वहन के लिए बेहद जरुरी है। उन्होंने वन अनुसन्धान संस्थान में आनुवंसिकी एवं वृक्ष सुधार प्रभाग के इतिहास, दृष्टि और जनादेश के साथ-साथ गतिविधियों और महत्वपूर्ण उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण भी दिया।
उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के साथ मेलिया, नीम, यूकेलिप्ट्स, पोलिगोनेतम और वन संरक्षण आदि पर प्रभाग द्वारा निष्पादित विभिन्न परियोजनाऔ और अनुसंधान कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। इफको द्वारा वितपोषित नीम सुधार के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना पर भी गहराई से चर्चा की गई, जो की 100% नीम कोटेड यूरिया वाली राष्ट्रीय नीति को ध्यान में रखते हुए कार्यान्वित की जा रही हे। मुख्य अतिथि डॉ मोहम्मद यूसुफ, वैज्ञानिक जी, निदेशक, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने सभा को संबोधित किया और वृक्षारोपण वानिकी के वृक्ष सुधार और उत्पादकता बढ़ाने में एफआरआई के योगदान पर प्रकाश डाला। उद्घाटन सत्र के अंत में डॉ ए निकोडमस (इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट जेनेटिक्स एंड ट्री ब्रीडिंग, कोयम्बटूर) द्वारा वृक्ष सुधार एवं प्रजनन के दोहरान संकर बीजो के संश्लेषण में आने वाली चुनौतियाँ पर मुख्य व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। उन्होंने टीक, यूकेलिप्टस, कैसुरीना जैसी पेड़ प्रजातियों में संचालित वृक्ष सुधार और प्रजनन कार्यक्रमों के माध्यम से हासिल की गई महत्वपूर्ण सफलताओ के बारे में बताया। अनेक चुनौतियों जेसे लकड़ी के आयात को रोकना, औद्योगिक मांग को पूरा करना, जलवायु परिवर्तन को कम करना इत्यादि के लिए वृक्षारोपण वानिकी के महत्व को बताया। उन्होंने कैसुरीना में निष्पादित दीर्घकालिक प्रजनन कार्यक्रम के लिए मॉडल योजना प्रस्तुत की जो 1991 से प्रोविनांस ट्रायल के साथ शुरू की गई और वर्तमान में कई किस्में वाणिज्यिक खेती के लिए जारी की जा चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि केसे आनुवंसिकी तोर से बेहतर रोपण सामग्री का उपयोग करके आर्थिक लाभ बड़ा सकते है। एक केस अध्ययन दिखाया गया जिसमे प्रजनन द्वारा औसतन 20 टन / हेक्टेयर के उतपादन के बराबर आर्थिक लाभ दर्ज किया गया। विशिष्ट लक्षणों जैसे कि तेजी से विकास, सीधेपन, चिकनी छाल, ज्यादा लुगदी उपज आदि के लिए नीलगिरी और कैसुरिना में अंतर प्रजाति संकर संश्लेषण की विस्तृत परिक्रिया को भी समजाया।
श्री जगदीश चंद्र, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (जैव विविधता), हरियाणा द्वारा प्रस्तुति के साथ पहले तकनीकी सत्र की शुरुआत की गई और उनके द्वारा वन प्रबंधन और रोपण सामग्री के सुधार में आनुवंशिकीविद् और प्रजनकों की भूमिका और जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला। डॉ. योगेंद्र सिंह, प्रोफेसर, गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर ने आनुवंशिक रूप से बेहतर रोपण सामग्री में रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त करने की तकनीकों पर चर्चा की। दुसरे तकनीकी सत्र में डॉ रवि प्रकाश, रजिस्ट्रार, नई दिल्ली द्वारा वन वृक्षों की प्रजातियों के क्लोन और किस्मों की पंजीकरण और सुरक्षा ’में पीपीवी और एफआरए की भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने जारी किए गए पेड़ों की किस्मों और क्लोनों को लेकर अनुसंधान संस्थानों और उद्योग के बीच तालमेल विकसित करने के लाभों के बारे में विस्तार से चर्चा की। इस श्रृंखला में, आनुवंसिकी एवं वृक्ष सुधार प्रभाग के वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार, ने वृक्ष प्रजातियों कि किस्मो के विकसित करने और उनको जारी करने कि पूरी परिक्रिया के बारे में विस्तार से बताया और एफआरआई देहरादून द्वारा हाल ही में जारी की गई मीलिया और सफेदा की किस्मों कि स्वीकार्यता और लोकप्रियता के माध्यम से समाज पर उनके प्रभाव पर चर्चा की। अंतिम प्रस्तुति डॉ. राजेश शर्मा, वैज्ञानिक जी, हिमालयन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, शिमला द्वारा कोनिफर पेड़ों का विशेष संदर्भ के साथ वन पेड़ों में लक्षण वर्णन (DUS) का अध्यन करने पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी का समापन डॉ मोहम्मद यूसुफ, वैज्ञानिक जी , निदेशक, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून द्वारा पैनल चर्चा और सिफारिशों के बाद किया गया।